Friday, October 5, 2012

जीवन के अंदर झाँकने का झरोखा है थिएटर ऑफ रेलेवेंस



रंगकर्म की यह खोज उस ऊँचाई पर पहुँचने के लिए दृढ़संकल्प नजर आती है, जहाँ सांस्कृतिक धरोहर का रूप होगा रंगकर्म। जहाँ संवाद संवाद नहीं रह जाएँगे सिम्फनी बन जाएँगे और दर्शक जीने लगेगा नाट्य मंच, नाट्य अभिनय। मंजुल का यह ट्रीटमेंट मानो सदी का मुकाम बन गया है। हालाँकि वे हर दृष्टि से यह बताना चाहते हैं कि थिएटर ऑफ रेलेवेंसके अनुसार थिएटर क्या है?’ ...


http://srijangatha.com/%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%A8-3Oct-2012

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